बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र : सर्ल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- नीतिशास्त्र की प्रणालियों पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. दार्शनिक तथा वैज्ञानिक प्रणालियों में अन्तर बताइए।
2. दार्शनिक प्रणालियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर -
दार्शनिक तथा वैज्ञानिक प्रणालियों में अन्तर
दार्शनिकों ने नीतिशास्त्र को दर्शन का अंग माना है, जबकि अन्य विद्वानों ने इसे विज्ञान की श्रेणी में रखा है। स्थूल रूप से नीतिशास्त्र की प्रणाली को कुछ विद्वान दार्शनिक (Philosophical) मानते हैं, जबकि कुछ विद्वान वैज्ञानिक (Scientific) मानते हैं। नीतिशास्त्र की प्रणाली को वैज्ञानिक मानने वालों में रुचि के अनुसार अनेक प्रकार की वैज्ञानिक प्रणालियाँ मानी गई हैं, जैसे भौतिक और जैवकीय प्रणाली ऐतिहासिक अथवा जननिक प्रणाली, मनोवैज्ञानिक तथा विश्लेषणात्मक प्रणाली।
विभिन्न विद्वानों ने दार्शनिक तथा वैज्ञानिक प्रणाली में अनेक अन्तर माने हैं।
(1) दार्शनिक प्रणाली नैतिक आदर्श के स्वरूप को परम सत्य के आधार पर निर्धारित करती है, जबकि वैज्ञानिक प्रणाली उसको अनुभव और प्रत्यक्ष के आधार पर विकसित करती है।
(2) दार्शनिक प्रणाली आलोचनात्मक है। उसमें चिन्तन का विशेष महत्व है। उसमें गम्भीर चिन्तन, विश्लेषण और बौद्धिक अन्तर्दृष्टि की सहायता से प्रदत्तों के अर्थ को समझने की चेष्टा की जाती है। वैज्ञानिक प्रणाली वर्णनात्मक तथा तथ्यात्मक है। इससे अनुभव और प्रत्यक्ष के आधार पर प्रदत्तों को इकट्ठा किया जाता है।
(3) वैज्ञानिक विधि में प्रत्येक घटना को अलग-अलग समझने का प्रयास किया जाता है, जबकि दार्शनिक विधि में प्रत्येक घटना के समस्त पक्षों पर विचार किया जाता है। प्रो. शार्प के अनुसार, "नीतिशास्त्र के विधार्थी ने अपना कार्य तब तक समाप्त नहीं किया है जब तक कि उसने सब प्रकार की मानव प्रकृति के नैतिक निर्णयों का पूरी तरह अध्ययन नहीं कर लिया है।
दार्शनिक प्रणाली
दार्शनिक प्रणाली के अनुयायियों में प्लेटो, अरस्तु, हेंगेल, ग्रीन आदि प्रत्ययवादी दार्शनिक आते हैं। इस प्रणाली के अनुसार नैतिक आदर्श परम सत् अथवा सवस्तु से निगमन द्वारा निकाले जा सकते हैं। दार्शनिक मत यह भूल करता है कि नीतिशास्त्र एक नियामक विज्ञान है। उसकी प्रणाली मात्र दार्शनिक नहीं हो सकती यद्यपि उसका दर्शन से निकट सम्बन्ध अवश्य है।
दर्शन की परिभाषा सेथ ने इन शब्दों में दी है उसकी समस्या नैतिक मूल्य से हमारे निर्णयों की व्याख्या तथा विवेचन है जिस प्रकार सौन्दर्यशास्त्र और तर्कशास्त्र की समस्यायें क्रमशः सौन्दर्यात्मक और तार्किक अथवा बौद्धिक मूल्यों के हमारे निर्णयों की व्याख्या और विवेचन है।' दार्शनिक मत ज्ञेय तथा नैतिक आदर्शों का आधार अज्ञेय को बना देता है।
जो दार्शनिक नीतिशास्त्र को भौतिक अथवा जैवकीय नियमों पर आधारित मानते हैं उनके अनुसार उसकी प्रणाली भौतिक या जैवकीय है। हरबर्ट स्पेन्सर ने मानव आदर्शों को पशु जगत से निकालने का प्रयास किया है। उन्होंने नैतिक नियम समाजशास्त्रीय नियमों पर मनोवैज्ञानिक, नियम जैवकीय नियमों पर और जैवकीय नियम भौतिक नियमों पर आधारित माना है। उन्होंने इन्हें एक ही विकास क्रम की अवस्था माना है। भौतिक या जैवकीय प्रणाली के समर्थक नीतिशास्त्र और भौतिकशास्त्र तथा जीवशास्त्र का अन्तर भूल जाते हैं। ये दो विधायक विज्ञान हैं जबकि नीतिशास्त्र नियामक विज्ञान है। यह दर्शन के उतने ही समीप है जितना विज्ञान के अतः उसकी पद्धति दार्शनिक तथा वैज्ञानिक पद्धति का मिला-जुला रूप है। अतः उसकी पद्धति को न तो दार्शनिक माना जा सकता है, न ही वैज्ञानिक। वास्तव में नैतिक आदर्श स्वयं सिद्ध है, उनका अपना विशेष स्वरूप है, उनको समाजशास्त्रीय अथवा भौतिक तत्व नहीं माना जा सकता।
ऐतिहासिक अथवा जननिक प्रणाली नैतिक आदर्श की उनके विकास क्रम अथवा उत्पत्ति से व्याख्या करना चाहती है। इनके अनुसार नीतिशास्त्र का कार्य नैतिक आदर्शों और संस्थाओं के मूल्य तथा उनके विकास का विवेचन करना है। ऐतिहासिक अथवा जननिक प्रणाली को मानने वाले विद्वानों की भूल यह है कि उनके द्वारा उद्गम की खोज को तत्व की व्याख्या मान लिया गया है। जैसे कोई वस्तु कैसे उत्पन्न हुई है, यह जानना वैज्ञानिक अथवा तथ्यात्मक दृष्टि से उपयोगी हो सकता है परन्तु उद्गम की दृष्टि से इसका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता। मूल्य तथ्यों से उत्पन्न नहीं होते हैं। नैतिक आदर्शों की ऐतिहासिक व्याख्या उनकी नैतिक व्याख्या नहीं है। उद्गम के इतिहास में मूल्यों की प्रामाणिकता नहीं होती है। उदाहरण के लिए "मुझे सच बोलना चाहिए का अर्थ यह नहीं होता कि मैंने सच बोला है, बोलता हूँ या बोलूँगा। वह उद्देश्य और विधेय में कोई कार्यकारण सम्बन्ध सहअस्तित्व अथवा किसी क्रम सम्बन्ध का द्योतक नहीं है।
उपयोगितावादी दार्शनिक ह्यूम, बेन्थम और मिल आदि ने नैतिक नियमों को मनोवैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित मानकर नीतिशास्त्र में मनोवैज्ञानिक प्रणाली का समर्थन किया है। इस मतानुसार नैतिक आदर्शों तथा नियमों के समर्थन के लिए उसका विश्लेषण करना आवश्यक है। इसी प्रकार मनुष्य सुख की खोज करता है, इस मनोवैज्ञानिक तथ्य से सुखवादियों ने यह नैतिक नियम निकाला कि उसको सुख खोजना चाहिए। नीतिशास्त्र में मनोवैज्ञानिक प्रणाली का समर्थन करने वाले विद्वान नीतिशास्त्र और मनोविज्ञान के मौलिक अन्तर को भूल जाते हैं। नीतिशास्त्र नियामक विज्ञान है जबकि मनोविज्ञान विधायक विज्ञान है। नीतिशास्त्र आदर्शों का तथा मनोविज्ञान तथ्यों का अध्ययन करता है। मनोविज्ञान के निर्णय वर्णनात्मक और नीतिशास्त्र के निर्णय आदेशात्मक होते हैं। मनोविज्ञान आचार के कारणों का पता लगा सकता है, परन्तु उसके औचित्य की व्याख्या नहीं कर सकता।
वास्तव में नैतिक प्रणाली को न तो वैज्ञानिक माना जा सकता न ही केवल दार्शनिक। यह समन्वयात्मक तथा अनुभवात्मक है। यह नैतिक निर्णयों और नियमों को व्यवस्थित करती है और फिर एक परम शुभ की कसौटी पर उसका मूल्यांकन भी करती है।
जेम्स सेथ के अनुसार "नीतिशास्त्र की सच्ची प्रणाली सुकरातीय प्रणाली है जिसमें व्यवस्थित करने के दृष्टिकोण से मानव के यथार्थ नैतिक निर्णय की सूक्ष्म और पूर्ण परीक्षा की जाती है। नीतिशास्त्र विज्ञान के क्षेत्र में प्रवेश करके वही नहीं रुक जाता अपितु उससे ऊपर उठकर दर्शन के क्षेत्र में पहुँचाता है।'
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- प्रश्न- गीता में वर्णित स्थितप्रज्ञ की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- गीता में प्रतिपादित लोक संग्रह की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- गीता में प्रतिपादित स्वधर्म की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- निर्वाण के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
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- प्रश्न- नीतिशास्त्र से आप क्या समझते हैं? परिभाषा देते हुए इसका अर्थ स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- नीतिशास्त्र की विषय-वस्तु क्या है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नीतिशास्त्र से क्या अभिप्राय है? इसकी प्रकृति एवं क्षेत्र बताते हुए भारतीय एवं पाश्चात्य नीतिशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नीतिशास्त्र की प्रणालियों पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
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- प्रश्न- कान्ट के नैतिक सिद्धान्त को समझाइए।
- प्रश्न- नैतिक विकास का क्या अर्थ है? नैतिक विकास के चरणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- नीतिशास्त्र एक आदर्श निर्देशक सिद्धान्त है। व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय नीतिशास्त्र को प्राथमिक जड़े कहाँ मिलती हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- क्या नीतिशास्त्र एक विज्ञान है?
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- प्रश्न- गीता के निष्काम कर्म की अवधारणा की व्याख्या कीजिए और उसकी काण्ट के कर्तव्य की अवधारणा से तुलना कीजिए।
- प्रश्न- नैतिक कर्म तथा नैतिक-शून्य कर्म में अन्तर लिखिए।
- प्रश्न- ऐच्छिक तथा अनैच्छिक कर्मों से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- ऐच्छिक व अनैच्छिक कर्म में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- नैतिक निर्णय से आप क्या समझते हैं? इसका स्वरूप तथा विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- क्या नैतिक निर्णय कर्मों के परिणाम के आधार पर होता है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- नैतिक निर्णय एवं अन्य निर्णयों में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- 'साध्यों का साम्राज्य।' व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- नैतिक चेतना से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- नैतिक चेतना के मुख्य तत्व बताइए।
- प्रश्न- नैतिक परिस्थिति से आपका क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- नैतिक परिस्थिति के लक्षण बताइए।
- प्रश्न- नैतिक निर्णय से आप क्या समझते हैं? साधन व साध्य का नीतिशास्त्र में क्या महत्व है?
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- प्रश्न- नैतिक निर्णय की आवश्यक मान्यताएँ क्या हैं? व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- दण्ड के सुधारात्मक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए। क्या मृत्युदण्ड उचित है? विवेचना किजिये।
- प्रश्न- दण्ड के विभिन्न सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- दण्ड का अर्थ तथा उद्देश्य क्या है?
- प्रश्न- दण्ड का दर्शन क्या है?